Wednesday 23 July 2008

नौका यह मेरी

Date: July 21, 2008


आप की उपस्थिति से
खुशगवार हो गई
नौका ये मेरी
बिन पतवार खो गई

सच आपकी कसम
थोड़ा जीने लगे थे हम
लहरों ने जिधर धकेला
उस ओर चल दिए हम
रास्ते को भूल
देख आपको रहे थे हम


अब आप जो नहीं
सब वीरान ही तो है
दरिया के बीच
बस हम अब बचें हैं
ना आप ना किनारा
ना कहीं कोई और सहारा

फिर आपकी ही याद
ऐसे घर कर गई
कि आपकी तलाश में
हर दिन हर रात में
नौका यह मेरी
बिन पतवार चल पड़ी

No comments: