Wednesday 23 July 2008

जब भी ये पगली पुरवइया

Date: 21 july, 2008


जब भी ये पगली पुरवइया
मेरे तन को छूती है
ऐसा लगे तुने छुआ
तेरी ही अनुभूति है ।

जब कोई चार चिडियाँ चहके
फुदक-फुदक दीवाना करदे
ऐसा लगे खुश है तू बड़ी
अंगना में झूमती है खड़ी

जब भी इस चतुर चाँद को
देखूँ मैं आँखें भर-भरके
ऐसा लगे देखा तुने भी चाँद को
खोजे मुझे उसमे रह-रहके

जब जब कोई खुशबू
मुझको मदहोशी देती है
ऐसा लगे पास है तू
वोह तेरे केशों से बहती है

जब ये कारी बदरी बरसे
मुझको पूरा गिला करदे
ऐसा लगे मुझको तू ढूंढें
खिड़की से बारिश को छूके

जब भी खाना लगे सामने
चटनी का मैं लूँ चटकारा
ऐसा लगे सूने से घर में
फिर होगा तुने प्यार पकाया

दूर कहीं जब कोयल कूके
कानों में मिश्री सा घोले
ऐसा लगे कहीं बैठ अकेले
आज पुकारा होगा तुने

जब भी ये पगली पुरवइया
मेरे तन को छूती है
ऐसा लगे तुने छुआ
तेरी ही अनुभूति है

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