Date: July, 2008
Time:2100
देखा फैला था अन्ध्यारा
थोड़ा सच था मैंने जाना
कमर कासी थी मैंने अपनी
अस्त्र एक, बस इक्षा शक्ति
निकल पड़ा मैं
झगड़ चला मैं
बदल रहा था ये दुनिया
ताकि आए तुझको निंदिया
छोड़ अपने तन की
तेरी ही सुधी ली
अपने पूरे दिन में
खुशी ही केवल बोई
और तुम सब कहते
मैं विद्रोही
मैं नीच, अशिष्ट
कपटी, दुराचारी
हाँ हूँ विद्रोही
हर उस काले काल का
हर उस सूने गाँव का
हर एक अज्ञानी सच का
हर एक उलझे हल का
हाँ हूँ विद्रोही
मैं विद्रोही ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment